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गुरुवार, जून 12

ख़्वाब आप के आए(ग़ज़ल)

 

रातभर ख़्वाब आप के आए 

साथ मीठास प्रेम की लाए


नींद से प्यार क्यों न हो प्रीतम

स्वप्न में तुम हो इस कदर छाए


कोशिशें छोड़ दो लुभाने की

ये कलम वो नहीं जो बिक जाए


है ख़तरनाक भीड़ से ज्यादा 

पागलों की इस भीड़ के साए


जानवर जाग जाए भीतर का

ज़ुल्म इतना भी न कोई ढाए

कुमार अहमदाबादी 


रविवार, जून 8

बारहा तू मत सता ए ज़िन्दगी (ग़ज़ल)


बारहा तू मत सता ए ज़िन्दगी 

चंद फूलों से मिला ए ज़िन्दगी 


क्यों हमेशा लू बनी रहती है तू

बन कभी ठंडी हवा ए ज़िन्दगी 


आंख बोली लग रही हो आज तुम 

मस्त सावन की घटा ए ज़िन्दगी 


ज़िन्दगी से त्रस्त इक बीमार की

तू ही है उत्तम दवा ए ज़िन्दगी 


थक गया हूं खोज कर अब तू बता

कामयाबी का पता ए ज़िन्दगी 


देर मत कर आ लिपट जा प्रेम से

प्रेम को बनकर लता ए ज़िन्दगी 

कुमार अहमदाबादी  

शनिवार, जून 7

करती है मेरा आदर(रुबाई)


करती है तन मन से मेरा आदर

रखती है मेरी पूरी खोज ख़बर 

हर पल मुझ पर न्यौछावर रहती है

ओढ़ाती है नींद में भी वो चादर

कुमार अहमदाबादी  

तस्वीर उभर आती है (रुबाई)

 

जब तेरी तस्वीर उभर आती है

इक पल में तन्हाई निखर जाती है

सारे फूलों की खुशबू दो पल में

भीतर के मौसम में उतर जाती है

कुमार अहमदाबादी

शुक्रवार, जून 6

प्यार की घटा छाई है(रुबाई)


तन मन में प्यार की घटा छाई है 

कुछ मीठा सोचकर ही शरमाई है

मन करता है झूमो प्यारे सजनी

हौले से मंद मंद मुस्काई है

कुमार अहमदाबादी

सोमवार, जून 2

हमें मालूम है कैसे सजाते हैं पत्थरों को (ग़ज़ल)


हमें मालूम है कैसे सजाते हैं पत्थरों को

ये भी मालूम है कैसे भुनाते हैं अवसरों को


कभी सिर मत उठाना भारतीयों के सामने तुम 

हमेशा हम झुकाते हैं घमंडी उन्नत सरों को


हमारे शस्त्र औ’ रणनीति दुनिया के सामने है

बचाना जानते हैं दुश्मनों से खेतों व घरों को

(उड़ाना जानते हैं दुश्मनों के खेतों व घरों को)


हमारे शेर थे खामोश काफी लंबे समय तक

मगर बेदर्द होकर अब कुचलते हैं विषधरों को


जगत के तात का एहसान कर के स्वीकार लाखों 

करोडों बार मैं सेल्यूट करता हूं हलधरों को

कुमार अहमदाबादी 

शनिवार, मई 31

तैयार है मयखाना (ग़ज़ल)

 

है स्वागत के लिये तैयार मयखाना

बुलाता है मुझे दिलदार मयखाना


कभी घर तोड़ देता है कभी दिल औ’

चलाता है कभी सरकार मयखाना 


ख़ुशी ग़म बेबसी आंसू ये कहते हैं 

है खासम खास सब का यार मयखाना 


ये वो इस उस में कोई भेद नहीं करता

लुटाता है हमेशा प्यार मयखाना 


आते है लोग वापस लौट जाते हैं 

सुनो कहता है जीवन सार मयखाना 

कुमार अहमदाबादी

ख़्वाब आप के आए(ग़ज़ल)

  रातभर ख़्वाब आप के आए  साथ मीठास प्रेम की लाए नींद से प्यार क्यों न हो प्रीतम स्वप्न में तुम हो इस कदर छाए कोशिशें छोड़ दो लुभाने की ये कल...