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शनिवार, अप्रैल 20

बातचीत की कला


बातचीत करना एक विशेष कला है। हम कोई भी बात कहें या सुनें। वो कहने के अंदाज पर निर्भर करती है कि कितना असर करेगी। बात कयी तरह से कही जाती है; क्यों कि बात कहने के लिये कयी तरीके भी अपनाये जाते हैं। दो या दो से ज्यादा व्यक्तियों के बीच रोजमर्रा की बातचीत के अलावा बात कहने के लिये कोई विचार या भाव बताने के लिये ही साहित्य लिखा जाता है। लेकिन वो एक तरफा रास्ता है। उस में एक ही व्यक्ति कहता है। बाकी श्रोता होते हैं।

रोजमर्रा की या जब रुबरु बातचीत के बारे में बात करें तो, बात कहते समय सब से पहले ये देखना पडता है कि इस वक्त वो यानि सामनेवाला हमारी बात सुनना चाहता भी है या नहीं। उस के बाद तय किया जाता है कि बात करनी है या कहनी है या नहीं कहनी। कभी कहनेवाले का मुड एसा होता है कि वो सामनेवाले को कुछ 'सुनाना' चाहता है। अक्सर एसे व्यक्ति सुना भी देते हैं और सुना भी देनी चाहिये; सिवाय के कोई एकस्ट्रा ऑर्डिनरी परिस्थिति हो।


लेकिन सुनाने का मूड न होकर सिर्फ बात करने का मूड हो तब ये देखना पडता है। सामनेवाले का बात करने का मूड है या नहीं। मूड हो तो बात शुरु कर देनी चाहिये; लेकिन अगर मूड नहीं है तो पहले बात करने के लिये उस का मूड बनाना पडता है। उसे हमारी बात सुनने व समझने के लिये तैयार करना पडता है। लेकिन ये बात सुनने के लिये तैयार करनेवाला काम तब आसान हो जाता है; जब सामनेवाला नया हो या अपरिचित हो। परिचित व्यक्ति को बात सुनने के लिये तैयार करना मुश्किल होता है। क्यों कि वो आप से परिचित होता है। इसलिये जैसे ही आप उसे तैयार करनेवाली बातें करेंगे। वो समझ जायेगा। इसलिये वो सीधा ये कहेगा कि 'ये सब बातें छोडो। सीधा वो कहो। जो आप कहना चाहते हो' यहीं कडियां बिखर जाती है। सुननेवाला ये नहीं जानता की हर कार्य की एक तकनीक होती है।

जैसे रसोई करने की एक तकनीक है,

रसोई बनाने के लिये पूर्वतैयारी यानि पहले से कुछ तैयारी करनी पडती है। ये पूर्व तैयारी हर जगह हर काम के लिये होती है। हरी सब्जी बनानी हो तो सब्जी बनाने से पहले सब्जी को धोया जाता है; फिर काटा जाता है। काटने के बाद सब्जियों को फिर धोया जाता है। मसाले तैयार रखे जाते हैं। उस के बाद सब्जी बनायी जाती है। जडतर का काम करें तो उस के लिये भी कुछ तैयारी पहले से करनी पडती है। नंग तैयार करने पडते हैं। कुंदन तैयार करना या रखना पडता है। कविता लिखें तो कविता के लिये भाव और विषय चुनने पडते है। विषय के अनुरुप शब्द याद करने पडते हैं। गीत को स्वरबद्ध करें यानि संगीतबद्ध करें तो गीत के भाव के अनुसार राग ताल एवं लय का चयन करना पडता है।

इसी तरह जब हम ये चाहते हों किसी को बात कहें तो पहले सुननेवाले व्यक्ति को बात सुनने के लिये तैयार कर लेना चाहिये। दूसरी तरफ ये भी होना चाहिये की जब दूसरा व्यक्ति हम से कोई बात कहे तो हमें भी गौर से उस की बात सुननी चाहिये गौर से सुनने पर ही सामनेवाले की बात का अर्थ और बात के पीछे की गहरायी समझ में आयेगी। जब सुनेंगे ही नहीं तो उस की बात का मर्म कैसे समझेंगे?

सामने वाले द्वारा कही गयी। बात में कौन सा मुद्दा खास है। वो मुद्दा क्यों खास है। अगर उस की बात मान लेनी है तो ठीक है। लेकिन अगर उस की बात काटनी है; तो फिर ये देखना पड़ता है। उस की बात में उस के द्वारा कहे गये। मुद्दे में गलती कहां है? उस गलती को पकड़कर फिर आगे बात की जाती है।
एक दूसरे की समझने के लिये सार्थक बातचीत जरुरी है। हम सार्थक बातचीत कब कर सकते हैं? जब कुशलता से बातचीत कर सकेंगे। एक दूसरा की बात का मर्म समझेंगे।
और......जब हम उस की बात का मर्म समझेंगे ही नहीं तो सार्थक बातचीत कैसे होगी?

*महेश सोनी*

गुरुवार, अप्रैल 18

श्रृंगार

तुम अनुपम मनमोहक हो

ये मैं नहीं कहता

तुम्हारा मन लुभावन रुप 

तुम्हारा गंगा जैसा

पवित्र श्रंगार कहता है


वो श्रंगार ये भी कहता है

कि वो प्यार का प्यासा है 

वो श्रंगार चाहता है

उस का कोई दीवाना आये

आकर बांहों में भर ले

बल्कि बांहों में भींच ले

भींचकर धीरे धीरे

हौले हौले हाथों से

एक एक कर के

श्रंगार के ये उपकरण 

हटाने लगे और 

नये उपकरण पहनाने लगे

जैसे कि बांहों का हार

होठों से होठों का श्रंगार

और...

उस के बाद....

उसे तो सोचते ही

शरमा जाती हूं

कुमार अहमदाबादी  

मंगलवार, अप्रैल 9

અનુસરણ ના કરું તો શું કરું?

 અનુસરણ

હું જો અનુસરણ ન કરું તો કરું યે શું?
અહીંયા મરી જવાનો પ્રથમથી જ રિવાજ છે
જલન માતરી

વા...હ જલન સાહેબ વા...હ
મૃત્યુ સનાતન સત્ય છે. જલન સાહેબે આ વાત સાવ સરળ શબ્દોમાં કહી છે. સામાન્ય રીતે લોકો સારા કાર્યો કે સફળતાનું અનુસરણ કરે છે. આ વાતનો આધાર લઈને મૃત્યુનું સનાતન સત્ય રજૂ થયું છે. જે અવતરે છે નિશ્ચિત મૃત્યુ લઈને અવતરે છે. પણ નિશ્ચિત મૃત્યુને અનુસરણ સાથે સરખાવી શાયરે શેરને ઊત્તમ શ્રેણીનો બનાવી દીધો છે. જગતનો દરેક માનવી અન્ય કોઈ કાર્યનું અનુસરણ કરે કે ન કરે. મૃત્યુનું અનુસરણ જરૂર કરે છે.

દૈનિક 'જયહિંદ'માં તા.૧।૧।૨૦૧૨ ના દિવસે મારી કૉલમ 'અર્જ કરતે હૈં'માં છપાયેલા લેખનો અંશ
અભણ અમદાવાદી

रविवार, अप्रैल 7

सन्नारी (रुबाई)


 *रुबाई*

वो भोली कोमल औ' संस्कारी है
रिश्तेदारों को मन से प्यारी है
जल सी चंचल सागर सी गहरी औ'
गंगा सी वो पावन सन्नारी है
कुमार अहमदाबादी

सोमवार, अप्रैल 1

गणगौर

 अहमदाबाद और आसपास के शहरों में राजस्थान के विभिन्न नगरों और गांवों से रोजी रोटी के लिये आये लोग बसे हैं। वे यहां अपने व्रत और त्यौहार मनाते हैं। जिन में राजस्थान की सांस्कृतिक विविधता होती है। अगले कुछ महीनों में चैत्रीय नवरात्रि के साथ साथ होली, थापना, गणगौर, वगैरह त्यौहार हर्षॉल्लास से मनाए जाएंगे। वासणा, निर्णय नगर, साबरमती, गोता, शाहीबाग, भावसार हॉस्टल आदि विस्तारों में राजस्थानी लोगों ने धूलेटी से ही गणगौर की तैयारियां आरंभ कर दी है। 


चैत्रीय नवरात्रि के तीसरे दिन गणगौर उत्सव मनाया जाता है। उस के लिये राजस्थानी युवतियां व महिलाएं विशेष पूजा अर्चना आरंभ कर देती है। होलिका दहन की राख और मिट्टी में से सोलह दिन की सोलह पिंडियां बनाकर छबड़ी में रखकर उस की पूजा करती है। सातवें दिन शीतला सातम मनाती हैं। उसी दिन मकर दास जी यानि शिव व गौरी अर्थात मां पार्वती सहित कानीराम (इसर दास जी के भाई) रोवा बाई(इसर दास की बहन) और मालण यूं कुल मिलाकर मिट्टी की पांच मूर्तियां बनाकर गणगौर तक रोज सुबह *गौर हे गणगौर माता खोल किवाडी* भजन गाकर पूजा की जाती है। सोमवार को इन प्रतिमाओं को लेने भीड उमड़ पड़ती है।

अहमदाबाद और आसपास के शहरों में राजस्थान के विभिन्न नगरों और गांवों से रोजी रोटी के लिये आये हुए लोग बसे हैं। वे यहां अपने व्रत और त्यौहार मनाते हैं। जिन में राजस्थान की सांस्कृतिक विविधता होती है। अगले कुछ महीनों में चैत्रीय नवरात्रि के साथ साथ होली, थापना, गणगौर, वगैरह त्यौहार हर्षॉल्लास से मनाए जाएंगे। वासणा, निर्णय नगर, साबरमती, गोता, शाहीबाग, वाडज, भावसार हॉस्टल आदि विस्तारों में राजस्थानी लोगों ने धूलेटी से ही गणगौर की तैयारियां आरंभ कर दी है। 

चैत्रीय नवरात्रि के तीसरे दिन गणगौर उत्सव मनाया जाता है। उस के लिये राजस्थानी युवतियां व महिलाएं विशेष पूजा अर्चना आरंभ कर देती है। होलिका दहन की राख और मिट्टी में से सोलह दिन की सोलह पिंडियां बनाकर छबड़ी में रखकर उस की पूजा करती है। सातवें दिन शीतला सातम मनाती हैं। उसी दिन मकर दास जी यानि शिव व गौरी अर्थात मां पार्वती सहित कानीराम (इसर दास जी के भाई) रोवा बाई(इसर दास की बहन) और मालण यूं कुल मिलाकर मिट्टी की पांच मूर्तियां बनाकर गणगौर तक रोज सुबह  गौर हे गणगौर माता खोल किवाडी  भजन गाकर पूजा की जाती है। सोमवार को इन प्रतिमाओं को लेने भीड उमड़ पड़ेंगी।

शाहीबाग के पवित्रा बहन ढंढारिया ने उत्सव की विशेषता के बारे में बताते हुए कहा ‘दीवार पर कुमकुम, मेहंदी, और काजल के टीके लगाकर रोज पुजा की जाती है। इस त्यौहार को पीहर जाकर मनाने की परंपरा भी है। विशेष रुप से शादी के बाद पहले गणगौर उत्सव का महत्व है। युवतियां सोलह दिन पीहर में रहकर ये उत्सव मनाती है। इस दौरान फूलपत्ती का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। नन्हीं बालिकाओं को शिव पार्वती बनाकर उन का आशिर्वाद लिया जाता है। महिलाएं आटा गूंथ कर उस से विविधाकार के व्यंजन बनाती है। उन व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। नवरात्रि के तीसरे गणगौर के दिन महिलाएं व्रत रखती है। 


अब कुछ जानकारी जो लेख में नहीं है। लेकिन मैंने अपने बीकानेर के बुजुर्गों से सुनी है। वो लिखता हूं। जब राजा शाही का युग था। तब नगर के हर इलाके से लोग गवर ईसर की शोभायात्रा निकालते थे। प्रत्येक शोभायात्रा राजा जी की गढ़ के सामने जाती थी। वहां महाराजा अपने हाथों से खोळा भरते थे एवं अन्य विधियां करते थे। स्वतंत्रता के बाद राज्य व्यवस्था बदलने से कुछ परिवर्तन हुए हैं। 

कुछ बातें बीकानेर से आकर अहमदाबाद में बसे स्वर्णकार समाज द्वारा मनाये जाने वाले उत्सव के बारे में,

अहमदाबाद में गणगौर मेले का आयोजन एक समिति करती है। ये आयोजन लगभग पिछले ढाई तीन दशकों से किया जा रहा है। ये आयोजन समाज के भवन पर किया जाता है। मेले वाले दिन शोभा यात्रा निकलती है। पहले के कुछ वर्ष शोभा यात्रा समाज भवन से प्रगति नगर कम्युनिटी हॉल जाती थी। समाज के कुछ लोग रास्ते में जुड़ते हैं। कुछ लोग सीधे कम्युनिटी हॉल पहुंचते हैं। शोभा यात्रा की विशेषता ऊंट गाडे होते हैं। जो वृद्ध व्यक्ति पूरी यात्रा में पैदल चल नही सकते। वे ऊंट गाड़े में बैठकर शोभा यात्रा के साथ जुड़े रहते हैं। 

गवर इसर को समाज की महिलाएं माथे पर रखकर भवन से कम्युनिटी हॉल तक ले जाती है। महिलाएं क्रमशः यानि एक के बाद एक माथे पर उखणती है। माथे पर रखने की कार्य को राजस्थानी भाषा में माथे पर उखणना कहते हैं। गवर इसर को उखणने के लिये महिलाओं में आपस में मीठी प्रतिस्पर्धा होती है। शोभा यात्रा के दौरान हर एक महिला जल्दी से जल्दी गवर इसर को माथे पर उखणना चाहती है। 

शोभा यात्रा कम्युनिटी हॉल पर पहुंचने के बाद वहां पूजा आरती खोळा भरना वगैरह विधियां होती है। महिलाएं घूमर खेलती हैं। पुरुष भी पारंपरिक राजस्थानी अंदाज में नृत्य करते हैं। 

कम्युनिटी हॉल में की सेवाभावी मित्र मंडलीयां विविध स्वयंभू(अपने आप अपनी मरजी से) सेवाएं देती हैं। कोई मित्र मंडली समाज के लोगों के लिये शरबत की व्यवस्था करती है तो कोई मित्र मंडली गोटों की व्यवस्था करती है। कोई फ्रूट क्रीम की व्यवस्था करती है। कोई गोटों की व्यवस्था करती है। वहां लगभग दो से तीन घंटे तक मेले की रौनक रहती है। लोग हर्षोल्लास से मिलते जुलते हैं। 

कुछ व्यक्ति अपने युवा बच्चों के लिये मेले में आये युवक युवतियों के वाणी वर्तन व व्यवहार पर नजर रखते हैं। उन की अनुभवी आंखें व सोच युवक युवतियों के वाणी व्यवहार से उन के व्यक्तित्व के बारे में अंदाजा लगाना शुरु कर देती है। 

बहरहाल,

दो तीन घंटों के बाद वापस गवर इसर को भवन पर लेकर आते हैं। कुछ समय वहां गीत गाये जाते हैं। उस के बाद गवर इसर को पूजा गृह में विराजमान किया जाता है; क्यों कि कुछ समय बाद धींगा गवर का आयोजन होता है। 

अनुवादक एवं लेखक - महेश सोनी 

शुक्रवार, मार्च 29

छेड़ दो (मुक्तक)



बांसुरी से राग मीठा छेड़ दो
मन लुभावन गीत प्यारा छेड़ दो
गोपियों की बात मानो कृष्ण तुम
तार राधा का जरा सा छेड़ दो
कुमार अहमदाबादी

गुरुवार, मार्च 28

सच डरता नहीं (कहानी)

 सच डरता नहीं


कौशल और विद्या दोनों बारहवीं कक्षा में पढते थे। दोनों एक ही कक्षा में भी थे। दोनों ही ब्रिलियन्ट स्टूडेंट थे, इसी वजह से दोनों में दोस्ती भी थी; और एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा भी थी। परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने के लिये दोनों खूब पढाई करते थे। पढाई में एक दूसरे की मदद भी करते थे।

लेकिन जैसा की अक्सर होता है। एक लडके व एक लडकी की दोस्ती को हमेशा शक की नजर से ही देखा जाता है। कौशल व विद्या के साथ भी एसा ही हुआ। जो विद्यार्थी व विद्यार्थीनी पढाई में दोनों का मुकाबला नहीं कर सकते थे। उन्हों ने दोनों के संबंधों के बारे में अफवाहें उडाना शुरु कर दिया। धीरे धीरे अफवाहें जोर पकडती गई। कौशल व विद्या को भी अफवाहों के बारे में पता चला तो दोनों हंसकर रह गये।

लेकिन एक दिन किसी ने अफवाह को एकदम निम्न स्तर तक पहुंचा दिया। उस दिन विद्या बहुत विचलित हो गई। इतनी विचलित हो गई कि आधी छुट्टी के दौरान आत्महत्या का इरादा कर के स्कूल से थोडी दूर से गुजर रहे रेल्वे ट्रेक की तरफ जाने लगी। विद्या की एक सहेली ने कक्षा में आकर वहां बैठे विद्यार्थियों को विद्या के इरादे के बारे में बताया। कौशल भी क्लास में था। कौशल तथा अन्य विद्यार्थी विद्या को वापस लाने के लिये उस की तरफ भागे।


वे सब विद्या के पास जाकर उसे समझाने लगे। मगर, विद्या ने किसी की नहीं सुनी और वो बस ट्रेक की तरफ चलती रही। दो पांच मिनट तक समझाने के बावजूद जब विद्या नहीं मानी तो आखिरकार कौशल ने उस का हाथ पकड लिया; और उसे वापस स्कूल की तरफ खींचता हुआ सा लेकर जाने लगा। विद्या ने विरोध किया पर कौशल नहीं माना। तब तक वहां अच्छी खासी भीड भी जमा हो गई।

भीड को जमा होते देखकर विद्या की एक सहेली ने कौशल से कहा 'कौशल, हाथ छोड दो, भीड इकट्ठा हो रही है। तमाशा हो रहा है।' ये सुनकर कौशल ने हाथ छोड दिया। हाथ छुटते ही विद्या फिर रेल्वे ट्रेक की तरफ भागी। कौशल ने दौडकर उसे वापस पकड लिया और स्कूल की तरफ ले जाने लगा। इस बार कोई कुछ नहीं बोला। उस के बाद कौशल वहां से स्कूल तक विद्या का हाथ पकडे रहा। वैसे हाथ पकडे हुए ही वो विद्या को आचार्य की ऑफिस में ले गया। आचार्य ने नजर उठाकर दोनों को देखा। चेहरे पर प्रश्नार्थ के भाव उभरे। उन भावों को देखकर कौशल ने आचार्य को बताया कि 'ये आत्महत्या के लिये ट्रेक की तरफ जा रही थी। इसे वापस लेकर आया हूँ'

आचार्य ने विद्या का हाथ पकडा और अपने पास एक कुर्सी पर बिठाया। फिर कौशल की तरफ मुडकर दो पल उसे गहरी नजरों से देखने के बाद बोलीं 'वेलडन कौशल, तुम्हारी निर्भीकता और नीडरता ने मुजे सत्य का प्रमाण दे दिया है। अब आगे मैं सबकुछ संभाल लूंगी। तुम्हें डरने की कोई जरुरत नहीं' 

कुमार अहमदाबादी

बातचीत की कला

बातचीत करना एक विशेष कला है। हम कोई भी बात कहें या सुनें। वो कहने के अंदाज पर निर्भर करती है कि कितना असर करेगी। बात कयी तरह से कही जाती है;...